तोड़ दिए रिश्ते, तोड़ दिए सारे बंधन,
क्यों कलाई पर किसी और के कँगन,
हाँथों में किसी के नाम की ये मेहँदी,
किसके लिए लगा रही अब ये अंजन।
इतनी आसानी से भूला दिए सारे वादे,
अब जोड़ रही हो किससे ये गठबंधन,
कसमों की अर्थी को लगा कर के आग,
लेकर फेरे बन गई हो किसकी दुल्हन।
पूछा है जो प्रश्न अब उत्तर भी दे दो,
रहकर मौन तोड़ रही हो हरेक वचन,
माना शरीर सौंप सकती हो उसे पर,
दे पाओगी उसको अपना सच्चा मन।
🖊️सुभाष कुमार यादव