तुमने घुमाया और मैं घूम गया।
आकर और रंग जैसे खो गया।।
धब्बा निरंतर दिखता था मेरे में।
वो अब भी है घूमने से खो गया।।
प्रतीक्षा कब तक करूँ रुकने की।
मृत्यु का बोध भी जैसे खो गया।।
तुम्हारे बिन ब्रह्मांड शून्य सा हुआ।
नर्क और स्वर्ग का असर खो गया।।
तुम से अलग 'उपदेश' कुछ नही।
तेरा साकार जैसे मुझमे खो गया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद