ये तुम्हारे बस का ही नहीं,
तुम तो अब रहने भी दो !!
मामला उसका है ,
उसे ही निपटने दो !!
जिस पर फबे कोई बात,
उसपे ही सजने दो !!
वो कालिख है या क्या है,
छोड़ो..अब रहने भी दो !!
हर जगह टाँग अड़ाना,
बिलकुल भी अच्छा नहीं !!
वो दोस्त हैं या दुश्मन,
उन्हें ही ये तय करने दो !!
- वेदव्यास मिश्र की बहुरंगी रचनायें
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