ये दौर-ए-मुश्किल भी एक दिन गुज़र जायेगा
कभी तो लौट के खुशियों का मौसम आयेगा
आज हर तरफ है मौजूद मौत का कहर
कोई बेबस है साँसों के लिए
कोई परेशां है रोटी के लिए
कब तक भी खुदा हमको यूँ आज़माएगा
ज़िन्दगी किसकी कितनी है ये तो मालूम नहीं
पर खुदा ज़िन्दगी में खुशियां भी लौटाएगा
है आज़माइश का दौर माना हमने
कभी तो बंदे का सजदा खुदा को मनाएगा
है दुआ अब यही मेरी
ख़त्म हो दर्द-ए-दास्ताँ अब सबकी
थक चुके इन आंसुओं से ऐ खुदा
अपनों को खोने का दम अब हम में ना रहा
दुआ तो कभी 'नरगिस' हमारी भी क़ुबूल हो जाएगी
लौट के खुशियां दुबारा भी ज़रूर आएँगी
----वजीहा नरगिस