सभी मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना।
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।
बन के सरसों के फूल यादें तेरी आतीं हैं।
मुझसे गेहूॅं की बालियों सी लिपट जातीं हैं।
अपनी यादों की पालकी में बैठ कर आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।
जब भी आते थे तो फागुन की तरह आते थे,
गुलमोहर सी दहकती तड़प छोड़ जाते थे।
सुनहरे पल मिलन के अपने संग ले आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।
याद आती है तेरे हाथों की बसंती छुअन,
विरह की तपती दुपहरी में झुलसता है बदन।
नीम की ठंडी-ठंडी छांव संग ले आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।
देखो इन मेरी बिना नींद वाली पलकें उठा,
प्यासे कजरारे नयन बन गये सावन की घटा।
चांदनी रात की बांहों में चांद बन आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।
गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




