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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

नव सम्वत्सर बन आना

सभी मौसम सभी ऋतुओं को संग ले आना।
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।


बन के सरसों के फूल यादें तेरी आतीं हैं।
मुझसे गेहूॅं की बालियों सी लिपट जातीं हैं।
अपनी यादों की पालकी में बैठ कर आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।


जब भी आते थे तो फागुन की तरह आते थे,
गुलमोहर सी दहकती तड़प छोड़ जाते थे।
सुनहरे पल मिलन के अपने संग ले आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।


याद आती है तेरे हाथों की बसंती छुअन,
विरह की तपती दुपहरी में झुलसता है बदन।
नीम की ठंडी-ठंडी छांव संग ले आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।


देखो इन मेरी बिना नींद वाली पलकें उठा,
प्यासे कजरारे नयन बन गये सावन की घटा।
चांदनी रात की बांहों में चांद बन आना,
प्रिये नव संवतसर बन के मेरे घर आना।


गीतकार अनिल भारद्वाज एडवोकेट हाईकोर्ट ग्वालियर




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar rachna...shandaar prem geet...badhayi ho Adarneey Anil ji... Saadar Pranaam 🙏💐💐🙏

अनिल भारद्वाज एडवोकेट replied

सम्माननीय पचौरी जी सादर अभिवादन। हार्दिक धन्यवाद। आपकी श्रेष्ठ और उत्कृष्ट समीक्षा का स्वागत है।

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