तुम कहते हो कि मैंने तुम्हारे लिए एक
ग़ज़ल लिखी है,
पर ये ग़ज़ल हो नहीं सकती।
इस ग़ज़ल में रदीफ़ है पर क़ाफ़िया नहीं,
और बिना क़ाफ़िया ग़ज़ल, ग़ज़ल नहीं।
ये ग़ज़ल नहीं ये नज़्म है,
जो हर बंदिश से स्वतंत्र है।
इसमें कहीं क़ाफ़िया कहीं रदीफ़,
तो कहीं ये दोनों बिल्कुल नहीं।
दास्तां है इसमें हमारी,
तो फिर ये ग़ज़ल कैसे हुई ?
दास्तां तो नज़्म हुआ करती है,
ग़ज़ल तो अपने आप में तरह - तरह के
भाव समेटे हुए होती है।
तुम कहते हो ग़ज़ल लिखी है,
अरे! ग़ज़ल लिखी नहीं जाती ग़ज़ल तो
कही जाती है।
जो लिखी जाए वो ग़ज़ल कहां,
वो तो नज़्म हुआ करती है।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




