सच की इस जंग में, भूल गए इकरार।
नाहक ही इस रंग में, भूल गए संस्कार।।
भूल गए संस्कार, देख रहा अब संसार
पूजा प्रतिष्ठा सब छोड़, रम गया विकार।।
भोला के चरणों से पावन हुआ ये संसार
विपदा चाहे लाख आई, मिटा संताप हार।।
मोहमाया के जाल में, आज फंसा संसार
निकलना है तो निकल वरना सब बेकार।।
झुंठ और सच कारोबार, छोड़ सकल सार।
मृत्यु बाद गर जगा तो, क्या होगा तेरा यार।।
जीवन मरण के बंधन से, मुक्त नहीं संसार
अच्छी करनी का फल मिले, मीठा संसार।।
ओरो के तलवे चाटना, नाहक ही परेशान
छोड़ छाड़ दे सबको, वरना क्या है शान।।
झुंठी माया झूंठी काया, है सबके सब बेकार
ईश्वर में तू ध्यान लगा, मत हो तू परेशान।।
----कनक