कुछ इस फिज़ा से, हर्फ़ का नज़राना मिल जाए..
कुछ इस जहां से, दिल का अफसाना मिल जाए..
तो एक ग़ज़ल कह लूँ..।
इस चमन की, उदास कलियों की सूरत देखूं कैसे..
बाग़बां की ज़ानिब से ही, कोई बहाना मिल जाए..
तो एक ग़ज़ल कह लूँ..।
अपनों की मुहब्बत पर, अब मुझे तो यकीन नहीं..
कोई बेग़र्ज़ यूं ही हाथ थामने, बेगाना मिल जाए..
तो एक ग़ज़ल कह लूँ..
अब लाऊं भी कहां से, ग़ुज़रे ज़माने की दीवानगी..
तलाशता हूं, एक बार फिर वो ज़माना मिल जाए..
तो एक ग़ज़ल कह लूँ..।
ये बहारें भी जाने किसकी सदा सुनती है "क्षितिज"
अबके बारिश का वही, दिलकश तराना मिल जाए..
तो एक ग़ज़ल कह लूँ..।