बूंद बूंद में ही, पूरी सावन समा जाती है
अगर तुम साथ हो
हवाएं, सांसों में, संगीत सजा जाती है
अगर तुम साथ हो
बादल जब गरजते हैं
बिजुरियां चमकती हैं
दिल की दिवानगी,बढ़ी बढ़ी जाती है
अगर तुम साथ हो
हवाओं की सर सर
कानों को जब छू जाए
हृदय में प्रीत की,गीत चली आती है
अगर तुम साथ हो
घर के खुले आंगन में
बहती है धारा सावन की
पांव घर से बाहर, दौड़ी दौड़ी आती है
अगर तुम साथ हो
देखना चाहते हैं तुम्हें
एकटक नजरों से जब
ये बूंदें पलकों को, छेड़ छेड़ जाती है
अगर तुम साथ हो
खबर नहीं होती, हमें
जुल्फों के भीगने की
तन और मन भी, भीगी भीगी जाती है
अगर तुम साथ हो
तुम ही मेरी सावन हो
तुम ही मनभावन हो
जीवन के फूल,खिली खिली जाती है
अगर तुम साथ हो।।
सर्वाधिकार अधीन है