अव्यक्त भावों को व्यक्त कर न सका,
शब्दों से अपने घावों को भर न सका।
विषाक्त प्रेम जो मिला उपहार स्वरूप,
मैं पान तो गया पर मर न सका।
गतिमान रहा सतत यह जीवन सफ़र,
आये कई मोड़ पर मैं ठहर न सका।
मेरी कस्ती डुबोने में हाथ है अपनों का,
छोड़ा मझधार और मैं पार कर न सका।
मेरे गम की वजह मेरा खुद का हुनर है,
‘सुबास’ हो कर भी मैं अतर न सका।
🖊️सुभाष कुमार यादव