मैं
न शब्द हूँ
न मौन —
मैं जन्म से भी पहले की सोच
और मृत्यु से भी परे की शंका हूँ।
मैं वह हूक हूँ
जो दिल के पहले धड़कती है,
पर कानों से सुनाई नहीं देती।
मुझे किसी किताब ने नहीं सिखाया
कि कैसे आकाश से
मिट्टी की भाषा बोलनी है।
मैं जब बहा
तो पानी नहीं था,
मैं जब जला
तो राख भी नहीं बनी।
मेरा नाम नहीं रखा गया कभी —
क्योंकि मैं नाम रखने से पहले का अनुभव हूँ।
जो तुमने कभी नहीं पढ़ा,
जिसे तुमने कभी नहीं चाहा,
मैं वही हूँ —
पर हर बार तुम्हारी आंख के पीछे खड़ा रहा।।
- ललित दाधीच।।