कौन,क्या और क्यों हैं हम ?
स्वयम् को जान पाएँ
यह सम्भव नहीं
यदि ताउम्र कोशिश भी करते रहें
तब भी यह मुमकिन नहीं
कौन हैं हम ?एक मनुष्य
जो परिश्रम कर,धन कमा परिवार का पालन करे
भरपूर धन कमाए तब भी संतोष नहीं पाए
फिर भी यह धन अपना न कहलाए ,एक दिन छोड़ कर यहीं चले जाए
यह तो नहीं जाना हमने
जो अपना नहीं उसका इतना अभिमान क्यों करें?
कौन है अपना ?परिवार जन
जो हमारे काम,क्रोध,लोभ,मद,मोह के सहायक
किन्तु उम्र के आखिरी में यह सब भूल जाएँगे या एक दिन यहीं छूट जाएँगे
क्या यह जाना हमने ?
फिर इनसे इतना मोह क्यों करें?
किससे है हमारी पहचान?तन से या मन से
जिसकी सुंदरता में,रंग-रूप में,स्वस्था में दिन रात लगे रहे
यह भी अन्त समय मिट्टी में मिल जाएगा
न यह मन अपना
जो अपनी मर्ज़ी से हर क्षण कहीं भी विचरण करता
हम कहाँ जान पाए कि
तन का नशा क्यों है हमें ?क्यों मन को बाँध न पाएँ?
क्यों हैं हम ?जब श्वास भी अपनी नहीं हमारी
कब टूट जाए यह जान पाएँ,इतना भी हक नहीं हमें
तन,मन,धन,परिवार,सासें कुछ भी अपना नहीं
तो क्यों मिला है जीवन?
जिसका एक क्षण भी हमारा नहीं
क्या जानने की कोशिश करें हम ?
जिसका आधार भी हमें पता नहीं ..
वन्दना सूद