शिक्षा और सोच – वास्तविक अंतर
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उस शिक्षा का कोई लाभ नहीं है, जो हमें सही और ग़लत में भेद करना भी न सिखा पाए। शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान का नाम नहीं है, बल्कि वह दृष्टि है जो हमें जीवन को समझने, परखने और विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है।
वास्तविक शिक्षा व्यक्ति के दृष्टिकोण को परिष्कृत करती है। हमारा दृष्टिकोण ही हमारी सोच का दर्पण होता है। परंतु अक्सर ऐसा देखा जाता है कि हम वही सुनना और समझना चाहते हैं जो हमारे मन को अच्छा लगता है। यह प्रवृत्ति हमारी सोच को सीमित कर देती है और हमें वास्तविकता से दूर कर देती है।
सोच से शिक्षित होना हर किसी के बस की बात नहीं है। डिग्रियाँ होने के बावजूद यदि सोच में परिपक्वता, मानवीय संवेदनाएँ और विवेकशीलता का अभाव है, तो शिक्षा अधूरी रह जाती है। यही कारण है कि कई बार अत्यधिक शिक्षित लोग भी मानसिक रूप से संकीर्ण और अविकसित सोच के शिकार नज़र आते हैं।
यहाँ दोष शिक्षा का नहीं होता, बल्कि शिक्षित व्यक्ति की मानसिक विकलांगता का होता है। शिक्षा तो केवल मार्ग दिखाती है, सही दिशा में चलना व्यक्ति की अपनी मानसिक परिपक्वता और आत्मचेतना पर निर्भर करता है।
इसलिए यह कहना उचित है कि शिक्षा का असली मूल्य तभी है जब वह व्यक्ति को विवेकशील, संवेदनशील और मानवीय बना सके। अन्यथा, केवल डिग्रियाँ और उपाधियाँ मनुष्य को शिक्षित नहीं, बल्कि मात्र जानकारी रखने वाला बना देती हैं।
डाॅ. फौज़िया नसीम शाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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