कवि का भूत मिला मुझे इक दिन !!
देखके मुझको रूक गये पल-छिन !!
बाग में बैठ गये वो तन्हा,
सीट से सटके किंचित विचलित !!
चारमीनार की श्वेत दंडिका,
सुलगाकर बोले वो नरमदिल !!
एक अधूरी रचना लिख दो,
जिसमें नायिका का ही वर्णन हो !!
मैंने पूछा क्या लिखना है,
ये तो बतायें करना क्या आखिर !!
उसकी याद में लिखते-लिखते,
खाना-पीना हुआ था मुश्किल !!
दो पैसे की भी आवक ना थी,
दस पैसे की बस जावक थी !!
छोड़ के चल दी साथ मेरा वो,
रचना रह गई मेरी अधूरी !!
कुंवारेपन में मर गया फिर मैं,
देखके उसको दया ना आई !!
पहले था शृंगार कवि मैं,
अब है बगावत मुझपर छाई !!
उस बैवफा पे लिख दो रचना,
कृपा करो हे रामदुहाई !!
फट से लिख दिया चार लाइना,
सुनते ही जाग गई तरूणाई !!
बोले मुझको धन्य हो प्यारे,
मोक्ष मिला मुझको रघुराई !!
एक है विनती तुमसे प्यारे,
सिर्फ कवि बनके मत रहना !!
हो नोकिया का भले मोबाईल,
पर स्टेटस अच्छा रखना !!
पर स्टेटस 😍 अच्छा रखना !!
वेदव्यास मिश्र की समझदार 😍 भरी कलम से...
सर्वाधिकार अधीन है