आज़ अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक दिवस पर
भारत के सुरों को याद करतें हैं।
ध्यानचंद माहेश्वरी बिंद्रा राठौड़ चोपड़ा को
नमन करतें हैं।
भारत अब केवल आयोजक हीं नहीं
पदकों में भी हिस्सा रखता है।
अनगिनत लाखों किस्से कहानियों की
ईबारत लिखता है।
भारत के पदकों से अब दुनियां भी सम्मोहित है।
भारत में भी ओलंपिक हो अब हम सब की
चाहत है।
अपनें खिलाड़ियों के प्रदर्शन से सभी भारतवासियों को राहत है।
एशियन राष्ट्रमंडल खेलों में भारत का प्रदर्शन तो बस केवल झांकी है।
आने वालें अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भारत का श्रेष्ठ प्रदर्शन अभी बाकी है।
सरकार से बिनती हमारी कि खेलों को भी
अनिवार्य विषय में डाला जाए
उठ जोड़ लगा फिर तबियत से
फेंक जहां तक भला जाए....
फेंक जहां तक भला जाए....