माना तेरे मेरे दरमियाँ एक फासला है
मगर ये नहीं कोई अनसुलझा मशला है
माना थोड़ी सी दूरी है, दूरी थोड़ी - बहुत जरुरी है
जिस प्रेम के लिए तूँ भटक रहा वो प्रेम तो मृग कस्तूरी है
पता चला? के असल में क्या मामला है
माना तेरे मेरे दरमियाँ एक फासला है
मगर ये नहीं कोई अनसुलझा मशला है
मौन अधर से नाम तेरा,जब धीरे से गगन में जाता है
ये चाँद खुद सा तुझको पाकर, बस मस्त मगन हो जाता है
कुछ रोप दिए मोहब्बत के बीज़,
जब दिल सा मिल गया गमला है
माना तेरे मेरे दरमियाँ एक फासला है
मगर ये नहीं कोई अनसुलझा मशला है
अंतस में तुम डोल रहे हो, प्रेम की भाषा बोल रहे हो
अरे मेरे दिल में बस तुम ही तुम हो, वैसे क्या तुम टटोल रहे हो
जी भर कर अपना काम करो,
मेरा दिल तुम्हारे लिए अमला है
माना तेरे मेरे दरमियाँ एक फासला है
मगर ये नहीं कोई अनसुलझा मशला है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
अमला - दफ्तर