कौन जानता हे जिंदगी को अपनी हे या पराइ हे
पत्ता नहीं किसी को. ये सजा हे या उसकी बधाई हे
युतो जिंदगी लंबी हे पर चार दिन की पुरवाई लगी
कभी हलकी-फूलकी कभी भारी भरखम ढ़ुलाई हे
जब रोगो ने घेरा तन को तब दुखो का बाजार भरा
सोच में पड जाता इंसा क्या ये कर्मो की रुस्वाई हे
मतलब आखीर समज में आया इस जिंदगी का
ऐक घर से दूसरे घर जाना जीवन की अंगड़ाई हे
चलो साथ में सब मीलकर ढूंढते ते हे कुछ उपाय
अच्छी सेहत-भोज-वीचार खुशियों की शहनाई हे
के बी सोपारीवाला