बेटी के चेहरे की हंसी तो केवल
दिखावे की खातिर है,
दर्द तो इतना है कि चैन से
वह सो नहीं पाती है,
बेटी का दर्द इतना है कि
हम, आप, कोई और,
देख नहीं सकता है,
फिक्र तो इस बात की है कि,
बेटी अब बन गयी है,
नेताओं को मोहरा,
बेटी हर मोड़ पर सुलह करना ही सीखती है,
डरी डरी सी आती है,
डरी डरी से जाती है,
क्योंकि वह जिंदगी में
एडजस्ट करना ही सीखती है,
----धर्म नाथ चौबे मधुकर