👉बह्र - बहर-ए-मुज़ारे मुसम्मन अख़रब
👉 वज़्न - 221 2122 221 2122
👉 अरकान - मफ़ऊल फ़ाएलातुन मफ़ऊल फ़ाएलातुन
गिरकर सँभल न पाऊँ , ऐसा नहीं हो सकता
तूफ़ाँ से हार जाऊँ, ऐसा नहीं हो सकता
राहों में कितने काँटें , कितने ही मोड़ आएँ
थक कर मैं बैठ जाऊँ, ऐसा नहीं हो सकता
आँखों में तेरा सपना, साँसोँ में तेरी ख़ुशबू,
तुझ बिन सुकून पाऊँ, ऐसा नहीं हो सकता
तुमसे ही ख़्वाब सारे, तुमसे ही मेरी दुनिया
तुमको कभी भुलाऊँ, ऐसा नहीं हो सकता
ज़ालिम के दर पे जाकर, रहमत की भीख माँगूँ
अपना में सर झुकाऊँ, ऐसा नहीं हो सकता
है 'शाद' लाख कमियाँ, मुझमें मगर किसी के
ज़ख्मों पे मुस्कुराऊँ, ऐसा नहीं हो सकता
©विवेक'शाद'