New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मेरी मां - ताज मोहम्मद


रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं।
जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज यही किया करता हूं।।1।।

सुबह उठता हूं मायूसी के साथ और दिन काटता हूं।
परेशान होकर इधर-उधर घर बड़ी देर से पहुंचा करता हूं।।2।।

देर रात घर के दरवाजे पर दस्तक दूं मैं किसको।
डर लगता है दूसरों से इसीलिए मां को आवाज दे दिया करता हूं।।3।।

अजनबी से होते जा रहे हैं किसी से क्या कहूं क्या सुनू।
एक मां ही है मेरी ऐसी जिससे कुछ कह सुन लिया करता हूं।।4।।

अब तो नाराज होने का हक भी मैं खोता जा रहा हूं।
बस मां से ही लड़कर थोड़ा अपना गुस्सा निकाल लिया करता हूं।।5।।

जाने के वक्त हर रोज मां हिदायतें देती तो है बहुत।
पर हर रात एक नया बहाना करके उसे टाल दिया करता हूं।।6।।

अहद करता हूं हर रोज खुद से ही कि अब सुधर जाऊंगा।
पर हर दिन यूं ही कटता है और मैं मायूस हो जाया करता हूं।।7।।

ऐसा नहीं है कि मां मेरे ऐसा करने से रूठती नहीं।
कभी-कभी गुस्से की उसकी डांट भी खा लिया करता हूं।।8।।

किसी का गुस्सा होना ना होना मुझ पर फर्क डालता नहीं।
पर हां मां कितनी भी नाराज हो मैं उसे मना लिया करता हूं।।9।।

हम जैसों का कौन होता ? जो मां जहां में ना होती है।
हो ना मुझसे वह दूर कभी हर रोज खुदा से यही दुआ किया करता हूं।।10।।

एक वही है जो मेरे लिए यू हमेशा परेशान होती है।
दिल दहल जाता है जब मां की आंखों में आंसू देख लिया करता हूं।।11।।

है कोशिशें जारी कि मैं उसको जिंदगी भर खुशियां दूं।
अब मैं मां की हर इक दुआ में खुद को ढाल लिया करता हूं।।12।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Riyaz said

Bahut Umda

ताज मोहम्मद replied

शुक्रिया भाईजान

आत्माराम जानकी said

"अब मैं मां की हर इक दुआ में खुद को ढाल लिया करता हूं" - Bahut Sundar bahut Khoob

ताज मोहम्मद replied

आपका तहे दिल से शुक्रिया।

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन