सात्विक-वृत्ति, सहचरि-वीथि, सत्कर्म-अबलि,
सुरतरु-सोमलता सा विलासित भव-क्षेम।।
सकल-लोक-समृद्धि, सुख-सौरभ-सौष्ठव,
शिव-शिवा सा एकदेह एकरंग-रूप,
अभूतपूर्व संभावना, संवेदना का सुदृढ़ स्वरूप,
सुवर्ण, सुलक्षणी, सुवृत्त, सुनीति, सुविचार,
शरद न करै स्पर्श सदैव बहै बासंती बहार,
अनुपम, अकाट्य, अच्युत, अक्षुण्ण रहै दाम्पत्य-प्रेम।।
अधिकार, कर्त्तव्य से परे समरस जीवन निर्वाह,
सहिष्णु, सौहार्दपूर्ण, सुमांगलिक मैत्रीभाव,
संस्कृति-सभ्यता से सुसज्जित सामाजिक अनुबंधन,
वसुमति-व्योमेश मिलन सा वैवाहिक संगुंफन,
सत-स्नेह-संस्कार से समंजित सद्जीवन,
दाम्पत्यजीवन में सदा बढ़ै हर्ष-हरीतिमा-हेम।।
द्विहृदय हृदयंगम गरिमामय गुत्थमगुत्था,
आक्षेप-तानों से भरा, विभ्रांंति से विभ्रमित वाद-विवाद,
नोंक-झोंक, छींटाकशी, चातुर्य-चुटीली-चुभन,
न अंधविश्वास, न अविश्वास का अर्जित अस्तित्व,
विश्वास-वैभव से विभूषित विचार-वस्तु-तत्व,
शामोसहर फूले-फलै पारिवारिक योग-क्षैम।।
विकल विपत्ति, व्यथा-व्यवधान से विह्वल,
सतत सप्रयास स्रोतस्विनी सा पथिक-पथ-प्रस्थान,
रहें निष्कलंक, निर्दोष, निष्कपट, निच्छल, निर्विकार,
'सुमिल'ज्यों श्यामल-सुवर्णा सा प्रणयी-प्रणीति,
बिखरै चहुँओर मनमोहक मंजु-मंजुल मन-प्रीति,
मलय-मलयज सा महके संसर्ग में कुशल-क्षेम।।
----क्रांति स्नेही