एक तलब चाय की।
हजारों तलब के यूं बीच,
एक तलब चाय की भी है।
जहां मन सहसा ही ठहर-सा जाता है,
जहां जिव्हा साधना में रम-सी जाती है।
जहां ओंठ मंत्र जाप में लग-से जाते हैं,
आत्मा जहां संपूर्णानंद में खो जाती है।।
मानो,जैसे किसी नदी को,
सागर से मिलने की चाह हो।
जैसे किसी भंवरे को गुल से,
बेपनाह-बेइंतहा प्यार हो।
किसी तपस्वी को जैसे सदा,
तलब हो उसकी सिद्धि की।
जैसे किसी शूरवीर को नित,
तलब हो इसकी प्रसिद्धि की।।
डूबा-डूबा रहता है वैसे ही,
जन-जन का प्राण-चिंतन।
चाय ना हो वो,जैसे हो कोई,
अमृतमय अमृता-सी झरन।।
मादकता है इतनी की जैसे कोई नशा हो,
पीर में रोता,जैसे कोई हृदय में बसा हो।
सच!चाय की चुस्कियों में जैसे जिंदगी हो,
पीते नहीं चाय लोग,जैसे करते बंदगी हो।।
हजारों तलब के यूं बीच,
एक तलब चाय की भी है।
कवि- पी.यादव 'ओज'
झारसुगुड़ा,ओडिशा,भारत।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




