जब तलक चुप रहे,सहते रहे,निभाते रहे,
वो हमें झुकाते गए,
हम झुकते रहे
जब कमर झुकने का दर्द न सह पायी
तब हम बोल पड़े
कड़वा सच कोई सुन न सका
इसलिए हम खुदगर्ज़ कहलाए
लेकिन हम उनकी हकीकत जान कर मुस्कुराए
क्योंकि अब हम भी समझदारों की महफ़िल के सिकन्दर बन गए..
वन्दना सूद