प्रेमी क्या जो पागल ना हो ,,
इश्क में अपने घायल ना हो ,,
तड़प कहां से होगी उसमे ,,
चाहत का गर कायल ना हो ,,
चाहे ना वो माशूका को ,,
डूबे नहीं निगाहों में ,,
दिल ना रोए तड़प तड़प कर ,,
माशूका की आहों में ,,
नाज ओ नखरे सह ना सके ,,
शिद्दत से उसे मनाए ना ,,
कदमों तले हथेली रखकर ,,
पलकें अपनी बिछाए ना ,,
फिर तो वो है जिश्म दीवाना ,,
प्रेमी नहीं पतिंगा है ,,
मर गया उसकी आंख का पानी ,,
इज्जत से भी नंगा है
सुधीर अवस्थी