"चाँद की रोशनी से दूर पड़ा ओस चमक
रहा था ,
न जाने खुद को वो क्या-क्या समझ रहा
था ,
हीरे सी चमक थी उसमे मोती सा आकर
था,
चाँद के दिए रोशनी से उसमें आ गया
अहंकार था,
चमक रहा था जगमग - जगमग जिस
समय अंधकार था,
रौशन है जग उसी की रोशनी से इसका
भ्रम उसे अपार था,
जिसकी रोशनी से वह रौशन हुआ उसे
भी रौशन करने वाला है कोई और इसका साक्ष्य पूरा संसार था,
अंधेरे के एक छोटे टुकड़े में अकेला जगमगा रहा था वो,
मैं ही मैं हूं अब तो दुनिया में बस यही गुनगुना रहा था वो,
तभी सवेरा हुआ और सूरज निकला लेकर प्रकाश अपार,
सूरज की किरणों ने किया ओस पर आकस्मिक प्रहार,
रोशनी सूरज की पड़ते ही ओस की रोशनी मुरझा सी गई,
जो रोशनी ओस में थी वह सूरज की रोशनी में समा सी गई,
अब रहा नहीं वो बूंद ओस का जिसको बड़ा
अभिमान था,
अब कौन बताए उनको कि वह केवल एक रात का मेहमान था।"
----- कमलकांत घिरी'.

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




