पसीना और नियति: मेहनतकश पिता
मैं वो वक़्त हूँ जो बदले बग़ैर ख़ुद को गुज़ारता रहा हूँ, ये ज़िंदगी है या रस्म, बस फ़र्ज़ को उतारता रहा हूँ।
न ख्वाब देखे नए, न पुराने को पूरा कर पाया, मैं बस बच्चों की आँखों में दुनिया सँवारता रहा हूँ।
ये मिट्टी जो हाथों पे ठहरी है, ये सिर्फ़ धूल नहीं है, मैंने मेहनत की कहानियों को बेआवाज़ पुकारता रहा हूँ।
अरे वो फ़ैसला जो अज़ल (आरंभ) से तय था, वो टूट तो सकता नहीं, मैं तमाम उम्र नियति को अपनी कवायद (प्रयास) से हारता रहा हूँ।
मेरा गुनाह बस इतना है कि मैंने सब्र को ईमान माना, इस सुकून को पाने में ख़ुद को पल पल विसारता रहा हूँ।
वो जो ज़ुल्म था बाहर का, वो ख़ैर था, मैंने सह लिया उसको, मगर अपने ही आप से जो शिकवा है, उसे आज तक बिसारता रहा हूँ।
ये रूह जो क़ैद है काम में, ये आज़ादी तो नहीं थी, मैं फ़कीर हूँ वक़्त का, बस किस्तों में जीता रहा हूँ।
अफ़सोस नहीं है कोई, ये सब फ़र्ज़ था, मैंने पूरा किया, बस इक सवाल है दिल में, जिसे दुनिया से छुपाता रहा हूँ।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




