"ग़ज़ल"
कैसे फ़लक मैं चूमता शहबाज़ से पहले!
तौलना था पर मुझे परवाज़ से पहले!!
फ़ैसले पे अपने वो नादिम नहीं होता!
अंजाम की जो सोच ले आग़ाज़ से पहले!!
सारे जहाॅं का प्यार निगाहों में ले कर!
देखा न था उस ने इस अंदाज़ से पहले!!
सुर-ताल से मिल कर लहराने के लिए!
नग़मों को मिलना पड़ता है साज़ से पहले!!
जाॅं जाए मगर लब पे राज़-ए-इश्क़ न आए!
'परवेज़' क़सम ले लूॅं मैं हमराज़ से पहले!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad