👉 बह्र - बहर-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम
👉 वज़्न - 1222 1222 1222 1222
👉 अरकान - मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
जिसे अपना यहाँ मानो वही अपना नहीं होता
अगर होता तो कोई भी कभी तन्हा नहीं होता
हज़ारों यार होते हैं अमीरों के ज़माने में
मगर दुनिया में कोई भी ग़रीबों का नहीं होता
लिबासों की तरह अब आदमी चेहरे बदलता है
किसी इंसान का अब एक ही चेहरा नहीं होता
ज़ुबाँ के सख़्त हों जो लोग दिल के साफ़ होते हैं
बहुत मीठी ज़ुबाँ का शख़्स भी अच्छा नहीं होता
अगर झुकने से बचता हो कोई रिश्ता तो झुक जाना
कि झुकने से ज़माने में कोई छोटा नहीं होता
अधूरा रह गया जो ज़ीस्त में उसका भी कैसा गम
किसी का भी कभी पूरा तो हर सपना नहीं होता
कभी आंधी ने रोका और कभी तूफ़ान ने रोका
न मिलती 'शाद' को मंज़िल अगर जज़्बा नहीं होता
©विवेक'शाद'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




