कुछ दिनमानो की दूरी से कैसे कह दूँ दूर हो तुम।
जैसे मैंने आँखें मूँदी सामने मेरे प्रतिमान हो तुम।।
मन की बात जब कभी अपनों से है कहनी चाही।
आहों पर मुस्काने रख दी दीवारो के कान हो तुम।।
नींदे खोई आँसू बोये तब भी जिन्दा जमीन हूँ मैं।
मेरी आवाजें कोई न सुनता राहें सुनसान हो तुम।।
चाहने वाले लोग अक्सर धोखेबाजी करते देखे।
मोहब्बत की राहों पर 'उपदेश' व्यवधान हो तुम।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद