"ग़ज़ल"
दुनिया के लिए मैं दरिया हूॅं चाहे तिश्ना-काम सही!
मिरी प्यास एक हक़ीक़त है हाथों में मेरे जाम सही!!
तुम यार बहुत हो ख़ास मिरे कुछ देर तो बैठो पास मिरे!
क़रार मिले कुछ दम के लिए कुछ पल का ही आराम सही!!
ये ख़ुशबू-ए-रात-की-रानी है मिरी ग़ज़ल तिरी कहानी है!
तिरे इश्क़ में ऐ महबूब मिरे मैं शायर इक बदनाम सही!!
हर ज़ुबाॅं पे अपना नाम रहा इस इश्क़ का चर्चा आम रहा!
मुझ पर भी कई इत्तिहाम लगे तुझ पर भी कुछ इल्ज़ाम सही!!
जो 'परवेज़' मोहब्बत करते हैं कभी पछताते हैं न डरते हैं!
जो भी हश्र हुआ दीवानों का अपना भी वही अंजाम सही!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद