मैं नहीं जानता कि तुम मुझे ऐसी क्यों लगती हो,
ना होकर अपनी लगती हो।
राम ने तुमको पार किया था उस पार उतरने को,
पावन सरयू जैसी लगती हो।
अशोक वाटिका में, सीता के चारों ओर खिली थी,
उन कलियों जैसी लगती हो।
नानी के किस्सों मे, हर रात जो आया करती थी,
उन परियों जैसी लगती हो।
मैं जो अब तक गाँव के, जिस मोड़ पर ठहरा हूॅं,
उन गलियों जैसी लगती हो।
रोज ख़्वाब में तो आति हो, पर कभी नहीं देखा,
तुम बिल्कुल वैसी लगती हो।
ख़ुद को कवि कहता था, वो छगन जान ना पाया,
तुम मुझको कैसी लगती हो।
-छगन सिंह जेरठी

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




