पल पल हम जिनके लिए
50 डिग्री में जलते रहे
उन्हीं को अक्सर हम खलते रहें।
हम समझे थे मुकद्दर अपना
वो मंज़िल कहीं और
तलाशतें रहें ।
और जिनको समझा था
परिवार अपना
वहीं बन के आस्तीन के सांप
मुझे डसतें रहें।
हम समझे की वो मुझसे
मुहब्बत कर रहें हैं
पर बन के दोस्त वे हमारी
तरक्की विकाश खुशियों से
जलते रहे।
और हम वफ़ा करके भी
उनको सदा खलते रहे।
हम उनके लिए गलते रहे
वो अक्सर मुझसे जलते रहे...
हम अक्सर उनको खलते रहें...