रात की खामोशियां, चीखती हैं बेसब्र होकर..
कौन सोता है आजकल, यहां बेख़बर होकर..।
ये हुज़ूमात भी कैसे, मेरे मसले को अंजाम देगा..
हर शख़्स खड़ा है, कभी इधर कभी उधर होकर..।
मैं हर रोज़ आजमाता हूं, तेरी निगाह में खुद को..
देखूंगा कभी तेरी सितम–ए–राहों का शज़र होकर..।
दर–बदर भटकते हैं तो, लोग आवारगी समझते हैं..
किस तरह रहूं मैं तेरे इस शहर में, यूं बे–घर होकर..
हकीकतें तो हर बार, सख़्त इम्तिहान लेती रहेंगी..
वो खाली हाथ चले गए, आए जो सिकंदर होकर..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




