जब कोई याद बहुत तंग करे — तो क्या करें?
जब एक तस्वीर धुंध में भी साफ़ दिखे,
और उसकी हँसी — रात की नींद चुरा ले।
जब उसकी चुप्पी — साज बन जाए,
और आँखें — बिना बोले भीग जाएँ…
तो क्या करें?
शायद…
वो ग़ज़ल फिर से गुनगुनाएँ —
जिसे सुनकर वो आँखें झुक जाया करती थीं।
जब मन करे सब कुछ छोड़ देने का — तो क्या करें?
जब लगे — कोई नहीं समझेगा,
जब लगे — ये सारी भाग-दौड़ बेमानी है।
जब लगे — चीख़ भी भीतर ही मर रही है…
तो क्या करें?
शायद…
एक दोपहर छत पर बैठें,
और बादलों से कहें: “मैं थक गई हूँ…”
और जवाब सुने — बारिश की शक्ल में।
जब बहुत प्यार हो, लेकिन कह न पाओ — तो क्या करें?
जब शब्द गले में फँस जाएँ,
और आँखें सब कुछ कह दें।
जब उसकी नज़दीकी भी एक दूरी बन जाए…
तो क्या करें?
शायद…
हवाओं से उसका नाम कह दें —
और दुआ करें — वो उस हवा को छू ले।
जब लगे कि सब कुछ खो गया है — तो क्या करें?
जब अपने ही पराये लगें,
और आईना भी अजनबी हो जाए।
जब किसी को पुकारो — और सिर्फ़ सन्नाटा लौटे…
तो क्या करें?
शायद…
एक दीप जलाएँ — अपने ही लिए।
और उस लौ से पूछें — “क्या मैं अब भी हूँ?”
जब कोई अपने बिना बताए चला जाए — तो क्या करें?
जब अलमारी में उसकी खुशबू रह जाए,
पर उसके शब्द नहीं।
जब मोबाइल में उसका नाम हो,
पर आवाज़ नहीं…
तो क्या करें?
शायद…
हर अलमारी, हर कोने से
“शुक्रिया” कहकर विदा करें उसे —
जैसे आत्मा अपने पूर्वजों को विदा करती है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




