पूर्वी हवा के कमाल से मस्ती भर गई।
शाखे भी झूम उठी बदरिया उघर गई।।
हसरतों का साया राह भटकना चाहे।
जुबाँ कुछ कहते-कहते राह उतर गई।।
इस तरह की रौनके कभी-कभी दिखे।
कुछ देर रुके 'उपदेश' धूप पसर गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद
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इस तरह की रौनके कभी-कभी दिखे।
कुछ देर रुके 'उपदेश' धूप पसर गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद