वो अस्ल नहीं ज़बान जो ज़मीर को ख़ामोश रखे, वतन की रूह तो गूँज है, उसे अल्फाज़ से तौल मत।
तूने विरासत को बाज़ार की ज़रूरत से तब्दील कर दिया, सोच की मिट्टी से पूछो, बिकने वाली फ़सल उगती नहीं।
इल्म रौशनी है, मगर माध्यम ही आईना है तेरा, जिस दिन आईना झूठा हुआ, रौशनी भी पहचानी न जाएगी।
गुलामी बस वो नहीं जो हाथों में हथकड़ी बांधे, आज़ादी तो ज़ुबान से शुरू है, जो ख़ुद की कथा कहती है।
ये लहजे की ख़ुराक है जो रूह को ज़ीस्त देती है, तूने अपनी नस्ल को वो भूख दी, जिसे पेट जानता नहीं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




