मेरी चाहत को तूं नाव बनाकर।
मेरी श्वासों को पतवार बनाकर।।
जीवन के इस भवसागर में।
ले चल मांझी धीरे-धीरे।।
खोया है जो अंतर मेरा।
बिन प्रियतम के नही सबेरा।।
उनमें बस हुआ है मन यह मेरा।
उन तक पहुंचा दें अब धीरे-धीरे।।
मन का सागर लेता हिलोरे।
नाव डगमग करे मेरा मांझी रे।।
आस न हो जाए कुंठित मेरी।
तूं उन्हे अमृत पिला अब धीरे-धीरे।।
मेरा बांट जोहते होगें प्रियतम।
पाकर कांग से संदेशा ।।
धुमिल न हो जाये आशा उनकी।
जा अंदेशा मिटा दें धीरे-धीरे।।
उनका हृदय ही मेरा घर है।
अपने ❤️ पर नही मेरा कोई बस है।।
निशा शेष है इस जीवन की।
चल दीप जला एक धीरे-धीरे।।
कैसी वियोग की काली छाया।
जिसके अंधकार में जीवन समाया।।
क्या प्रारब्ध यही है मेरा?
मांझा!जा उन्हें बदल आ धीरे-धीरे।।
क्षीण श्वास है ,मेरा मन उदास है।
प्यार की केवल जगी प्यास है।।
प्रभु से इतनी बस अरदास है।
मेरा मीत मिला अब धीरे-धीरे।।
जिनके प्रेम में मै बावरियां।
जिसका प्रियतम वह सांवरिया।।
जिस बिन जीवन यह उदास है।
पहुंचा ,उस तक मांझी धीरे-धीरे।।
मांझी !नाव नही मेरी कमजोर।
बांधी विश्वास की उसपर डोर।।
सांस का उठना सांस का गिरना।
मेरा प्रीत बढा है धीरे-धीरे।।
नही आकर्षण यह कोई कोरा।
ज्यूं भ्रमर रीझता हर कलियों पर।।
प्रेम जताता मधू चूसता।
उड़ जाता फिर धीरे-धीरे।।
मेरा मन यह वैरागी है।
उस प्रियतम का बस अनुरागी है।।
जिसने मुझको प्रीत सिखाया।
मुझे अपना मीत बनाया धीरे- धीरे।।
मांझी जीवन बहुत कठिन।
बिन पानी ज्यूं मीन मलिन है।।
व्याकुल होती और तड़पती।
मेरा जी भी तड़पता धीरे-धीरे।।
बीत न जाये जीवनबेला।
ओ मांझी जरा तेज चलो अब।।
उनके हिय मै से लग जाऊं।
पिऊं अधर से अमृत धीरे-धीरे।।
वही एक मेरा जीवन हेतु।
जिनपर विश्वास का मेरे सेतु।।
प्यार की अनुपम पूंजी पाऊं।
मेरा जीवन जीत करा अब धीरे-धीरे।।
वह भी व्याकुल मै भी व्याकुल।
सारी दुनियां लगती व्याकुल।।
ठगी नही विशुद्ध प्रेम है।
मांझी!पहुचां दे अब धीरे-धीरे।।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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