दरिया की धार तेज किनारे कट रहे।
नुमाइश देखने वाले धीरे-धीरे छट रहे।।
शहर की दूरी कुछ चार किलोमीटर।
उल्टे बहाव के डर से खतरे पलट रहे।।
इंसानी फितरत मौसम पर टिके कैसे।
हवा का जोर बढने से परिंदे डट रहे।।
डालियाँ झूमने लगी बूंदावादी बढ़ गई।
रास्ते खाली 'उपदेश' अंधेरे पट रहे।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद