न्याय की तराजू
शिवानी जैन एडवोकेट
न्याय की तराजू,
न हो कभी असंतुलित,
हर दोषी को मिले,
उसका फल उचित।
कमजोर को मिले,
सहारा और साथ,
न्याय का हो सदा,
सबके सिर पर हाथ।
कभी अनसुनी चीखें,
कभी दबी आवाज़ें,
हर दर्द को मिले,
न्याय की नवाज़ें।
कभी बेबस निगाहें,
कभी टूटे सपने,
हर आँसू को मिले,
न्याय के अपने।
कभी झूठे इल्ज़ाम,
कभी सच्ची पुकार,
हर सच को मिले,
न्याय का आधार।
कभी अन्याय का साया,
कभी इंसाफ की धूप,
हर अँधेरे को मिले,
न्याय का स्वरूप।