आँधियों मे उड़ गई छप्पर की छत जिधर।
महफूज कैसे रहेंगे उनमे फकीर रात भर।।
धुन्ध छाई रही आँखों मे दिलबर क्या कहें।
मौसम का सहारा आगोश मे इजाजत पर।।
धूप की वज़ह से खुश होते थे महबूब जब।
पेड की डाली पर पत्ते घने देते राहत प्रखर।।
अब तो मौसम वैसा दिखता नही 'उपदेश'।
आदत से मजबूर अन्तरात्मा कहे मत सुधर।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद