देश तो मेरा नहीं था ऐसा
अपने देश की क्या मैं गाथा सुनाऊँ
जहाँ कभी अनेकता में एकता दिखाई देती थी
स्वाभिमान व्यवहार से छलकता था
आँखों में देश-भक्ति नज़र आती थी
उसकी आन-बान-शान में जान क़ुर्बान करने वालों की क़तारें थी ..
नहीं रही अब मेरे देश की छवि ऐसी
धन की भूख आज ऐसी बड़ी
सत्ता की होड़ आज ऐसी चली
कुछ ने बाँट दिया सबको जातिवाद में
कुछ बँट गए ख़ुद जातिवाद में
अब न देश के प्रति समर्पण है मन में और न बचा झण्डे का मान नज़र में ..
देश की ताक़त है आत्मनिर्भरता से
यह नहीं चलता किसी जाति से ,न ही बनाता है कोई परिवार उसे
क्यों बनकर इतने स्वार्थी ,अपनी नज़र में ही गिरते हो
छत देने वाले को,पहचान दिलाने वाले को
कुछ धन के लालच में ,क्यों दर दर हाथ जुड़वाते हो ..
देश तो मेरा ऐसा था
जहाँ हाथ बढ़ाने वाले को
गले लगाया जाता था
फिर क्यों सम्मान दिलाने वाले का
आज तुमने सिर झुकवाया है
स्वावलंबी बनाना चाहा जिसने तुमको
क्यों तुमने उसका मान घटाया है..
वन्दना सूद