जब कोई पुरुष अपने स्पर्श में कोमलता लाता है, अपनी बातों में सम्मान रखता है, और हर रोज़ बिना शोर मचाए आपको मान देता है…
तो एक औरत के भीतर धीरे-धीरे एक दरवाज़ा खुलता है —
जो बरसों से बंद था, सख़्ती से बंद।
उसका तन नहीं, उसकी आत्मा साँस लेना शुरू करती है।
एक औरत को अक्सर तब एहसास होता है कि वो कितने तनाव में जी रही थी,
जब वो पहली बार किसी ऐसे इंसान के साथ होती है जो उसे डर में नहीं रखता।
जो अपने शब्दों को हथियार नहीं बनाता,
जो अपनी बात मनवाने के लिए उसकी चुप्पी को दंड नहीं बनाता।
जब कोई पुरुष सिर्फ़ साथ नहीं देता,
बल्कि उसके टूटने की आवाज़ भी सुन पाता है,
जब वो उसकी जटिल भावनाओं को “बहुत ज़्यादा” कहकर नहीं काटता —
बल्कि उन्हें समझने की जगह देता है…
तभी पहली बार कोई औरत 'उपदेश' भीतर से ठहर पाती है।
यही वजह है कि कुछ औरतें ऐसे रिश्तों में आकर खिल उठती हैं !!!...
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद