धीरे-धीरे हमारे प्यार की निशानीयाँ मिट रही है
अरसा गुज़ारे थे जहांँ वो परछाईयाँ मिट रही है
गुँजा करती थी जिस जगह क़हक़हे हमारी
अफ़्सुर्दा रातों की अब बेताबियांँ कट रही है
चाँदनी के साये में बैठ जिन साज़ों पर हम नग्मे छेड़ा करते थे
धूल पड़े उन साज़ों की अब तन्हाईयाँ कट रही है