रिश्तों के कुरुक्षेत्र में देखो,
अपने-आप से लड़ती स्त्री।
ख्वाब में पसीना-पसीना है,
किसके पीछे भागती स्त्री।
मन की गाँठ खोलती ही नही,
दुनिया के भूगोल से परे स्त्री।
तरह-तरह का इतिहास भीतर,
कुछ खोलती कुछ ढाँकती स्त्री।
रसोई और बिस्तर में पारंगत,
प्रेम की परिभाषा सिखाती स्त्री।
रहस्यमय परिस्थितियों में जीती,
सोने के पल 'उपदेश' जगाती स्त्री।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद