मैं रमना चाहती हूँ,
नींद की तरह शरीर में तुम्हारे।
और सुख शान्ति देना चाहती हूँ,
दिल में रहकर तुम्हारे।
डरती हूँ रोशनी से,
वही फासले सर्जन करती हमारे।
भोर को आती 'उपदेश',
नींद को शरीर से दूर करती तुम्हारे।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद