बेचारा भईय्या रिक्शा वाला,
सीधा-सादा और है भाेला भाला।।१।।
सुबेर उठते ही रिक्शे काे चलाता,
उस पर बैठा कर दूर-दूर लाेगाें काे ले जाता।।
जब लाेगाें काे उनके द्वार पहूंचाता,
बदले में रुपये भी बहुत कम पाता।।
श्रम कर न मजदूरी न मिले ज्याला,
बेचारा भईय्या रिक्शा वाला।।२।।
सुबेर से भूखे पेट न पीया न खाया,
रिक्शा चलाते-चलाते दाेपहर भी आया ।।
तेज धूप में भी चलता रिक्शा ले कर,
शरीर से निकलता पसीना तर तर।।
बहा कर भी पसीना न खूले किस्मत का ताला,
बेचारा भईय्या रिक्शा वाला।।३।।
दाेपहर बाद फिर हाे गई शाम,
न करे वह एक क्षण भी आराम।।
थक कर भी रिक्शा चलाता,
लाेगाें काे बैठने के लिए बुलाता।
रिक्शा चला-चला कर है चमड़ी काला,
बेचारा भईय्या रिक्शा वाला।।४।।
कई लाेग मिलते उसे ऐसे भी,
रिक्शे पर बैठ कर देते नहीं पैसे भी।।
कभी कभी लाेग ईतना जुलम ढाते,,
उस पर तरस काेई भी नहीं खाते।।
कभी पड़े उसे बुरे लाेगाें का पाला,
बेचारा भईय्या रिक्शा वाला।।५।।
अपने बिबी बच्चाें काे कैसे वह खिलाएगा,
रिक्शा वाला रिक्शा कब तक चलाएगा।।
अब जीवन है उसका बनाना,
गरीबी रेखा से उपर उसे है उठाना।।
जिंदगी है अंधेरा कब हाेगा उजाला,
बेचारा भईय्या रिक्शा वाला।।६।।
बेचारा भईय्या रिक्शा वाला.......
----नेत्र प्रसाद गौतम

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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