छाेटू दिन रात दिहाडी पर चलता है,
हर किसी के सादी में जूठे भान्डे मलता है।।
उसका अपना खास एक ठेकेदार है,
बाेल-चाल में ठीक-ठाक लेकिन बेकार है।।
छाेटू के नाम से रुपये चार साै लेता है,
उसे सिर्फ दाे साै कभी देता कभी नहीं देता है।।
ठेकेदार का कई केटरिंगाें में सम्पर्क है,
छाेटू का जीवन ताे वैसे एक नरक है।।
बता रहा एक राेज दुख की ये बात काे,
किसी का विवाह है एक भवन में रात काे।।
किसी केटरिंग ने कई वेटर मागा है,
छाेटू भी सबेरे से बर्तन मलने लगा है।।
छाेटा-माेटा काम नहीं बडा काम है,
करिब पांच साै आदमी का ईन्तजाम है।।
रात नाै बजे खाना लग कर तयार है,
दश बज चूके बारात न आई उसी का ईन्तजार है।।
रात ग्याह्र बजे तब जा कर बारात आया ,
उस बारात ने ताे हजार आदमी लाया।।
कई लाेग खाने पर टूट पडे,
कई लाेग हैं वहां भूखे ही खडे।।
उस जगह अफरा-तफरी मची है,
खाना-बाना बिलकुल नहीं बची है।।
कई बावर्जी दाल-भात पका रहे,
कई फिर आटा - बाटा लगा रहे।।
कई लाेग आरहे कई लाेग जा रहे,
वेटर लाेग टव भर भर जूठे बर्तन ला रहे।।
वह बेचारा छाेटू अकेला ही मर रहा,
जूठे बर्तन साफ...फटा फट कर रहा।।
इतने में केटरिंग मालिक घुस्से में आया ,
गाली गलौज दे कर उसी काे धमकाया।।
बर्तन के ढेर लगे साले,
हाथ जल्दी जल्दी चलाले।।
ऐसा बाेल जाेर से लात एक मारा,
दूर जा कर गीरा वह छाेटू बेचारा।।
उसे पीठ में बहुत ही दर्द हाे रहा,
वह सुबक-सुबक वहां पर राे रहा।।
क्या वह सारी उमर जूठे बर्तन मलेगा,
उसके साथ ये अन्याय कब तक चलेगा?।।
उसके साथ ये अन्याय कब तक चलेगा.......
----नेत्र प्रसाद गौतम