ख्वावों की लकड़ियों से ,
यादों का चूल्हा जलाकर,
रोटी के सूखे टुकड़ों को ,
भावनाओं के तवे पर ,
कुंठित मन से सैंक कर,
चौड़े पत्तों के कटोरे में ,
साग भाजी के रस के साथ ,
अरमानों की चटनी सहित ,
मासूम बच्चों को परोसकर ,
मन की व्यथा दबाये हुए ,
बेचारी, बेबस, "गरीबी देवी "
एक हाथ बच्चों के सर पर ,
दूसरा हाथ पूजा की थाली पर ,
दिवाली के शुभ अवसर पर ,
सच्चे मन से ,
महंगाई से निजात पाने ,
लक्ष्मी पूजन के लिए ,
सुसज्जित होकर खड़ी थी ,
आशान्वित होकर ,
अगली दिवाली अवश्यमेव,
सस्ती खुशियां लेकर आएगी,
गरीबी_देवी की,
दहलीज पर !
----राजेश कुमार कौशल ,
[हमीरपुर,हिमाचल प्रदेश]