जरा पलट कर देखना
अपनी यादों को,
एक ही रिश्ते में समाए
कितने रिश्ते नज़र आएँगे।
माँ-बाबा के जैसे
न सारथी मिलेंगे और न ही दोस्त।
ये स्वार्थ के बन्धन नहीं हैं
फिर क्यों अनजानों में
इन्हें ढूँढने की नाकाम कोशिश करते हो?
साथ हँसने-रोने वाले बहुत मिल जाते हैं,
पर तुम्हारे गमों में भी
जो तुम्हें जीना सिखाएँ,
वो सिर्फ़ माँ बाबा ही हैं।
इनके रहते हुए ,
परायों से मन नहीं लगाया करते ..
वन्दना सूद
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