उम्र के हिसाब से बुजुर्ग हो गये हम।
मन का क्या करे इधर-उधर गये हम।।
एक ध्वनी अब भी कानो में गूँजती।
उसको सुनने के लिए शहर गये हम।।
सफर लम्बा धडकता दिल याद में।
चलते चलते सफर में बिखर गये हम।।
उम्मीद पूरी होगी जान रहे 'उपदेश'।
सुनसान गली जाने से मुकर गये हम।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद